अध्यात्म

यह वरदान पाने के लिए द्रोपती ने की थी भगवान शिव की कड़ी तपस्या, तब मिला था ये वरदान

इसमें कोई शक नहीं कि द्रोपती के बिना महाभारत की कथा अधूरी है, क्यूकि द्रोपती महाभारत का सबसे अहम हिस्सा है। बता दे कि महाभारत काल से द्रोपती का नाम सबसे प्रभावशाली और शक्तिशाली महिलाओं में गिना जाता है और जो लोग नहीं जानते उन्हें हम बता दे कि द्रोपती को पांचाली भी कहा जाता है। अब अगर हम उस वरदान की बात करे जो द्रोपती को भगवान शिव की कठोर तपस्या करने के बाद मिला था, तो वह वरदान द्रोपती के लिए बेहद खास था।

भगवान शिव ने द्रोपती को दिया था ये वरदान :

गौरतलब है कि द्रोपती राजा द्रुपद की पुत्री थी, जो पांचाल देश के राजा थे और इसी वजह से द्रोपती को पांचाली कहा जाता है। इसके इलावा यज्ञ से उत्पन्न होने के कारण द्रोपती को याज्ञनिक भी कहा जाता है। दरअसल द्रोपती को पूर्व जन्म में पति सुख की प्राप्ति नहीं हुई थी, तो ऐसे में द्रोपती ने भगवान शिव की कड़ी तपस्या की और फिर शिव जी ने प्रसन्न हो कर वरदान मांगने के लिए कहा। जिसके बाद द्रोपती ने सर्वगुणयुक्त पति प्राप्ति का वरदान मांग लिया और उन्हें यह वरदान मिल भी गया। यही वजह है कि द्रोपती की शादी पांच पांडवों से हुई, जो अलग अलग गुणों से युक्त थे।

भीम से था खास लगाव :

केवल इतना ही नहीं इसके साथ ही द्रोपती को आजीवन कुंवारी रहने का वरदान भी मिला था और इसलिए द्रोपती अपने हर पति के साथ एक जैसा ही व्यव्हार करती थी। यानि सब पतियों के साथ पत्नी धर्म निभाते हुए भी द्रोपती आजीवन कुंवारी रही। हालांकि द्रोपती को अर्जुन से प्रेम जरूर था, लेकिन उनका सबसे ज्यादा लगाव भीम से था। इसकी वजह ये है कि भीम हमेशा द्रोपती के साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ विरोध करते थे और केवल इतना ही नहीं इसके इलावा भीम ने दुशासन का वध करने की प्रतिज्ञा भी ली थी। इसके साथ ही द्रोपती की प्रतिज्ञा को भी भीम ने पूरा किया था। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि द्रोपती को भीम से खास लगाव था।

कृष्ण जी को सच्चा मित्र और भाई मानती थी द्रोपती :

अब अगर हम श्रीकृष्ण की बात करे तो द्रोपती कृष्ण जी को अपना भाई और सबसे अच्छा मित्र मानती थी। तभी तो जब द्रोपती पर संकट आया तब उन्होंने कृष्ण जी को याद किया और फिर कृष्ण जी ने उनके सम्मान की रक्षा की। वैसे ये बात बहुत कम लोग जानते है कि द्रोपती को महाकाली का अवतार भी कहा जाता है। जी हां ऐसा कहा जाता है कि उनका जन्म अभिमानी राजाओं का अभिमान मिटाने के लिए ही हुआ था, जो धरती पर अधर्म को खूब बढ़ावा दे रहे थे। तो इस तरह से भगवान शिव की कठोर तपस्या करने के बाद द्रोपती को पति सुख का वरदान प्राप्त हुआ था और इस वरदान के बावजूद भी वह आजीवन कुंवारी ही रही।

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