सामान्य ज्ञान

यह कैसे और कौन तय करता है कि अब नए नोट छाप लेने चाहिए, जानिए क्या होते हैं इसके नियम

बता दे कि नोट छापने संबंधी पूरी जानकारी के बारे में काफी कम लोग ही जानते होंगे। जी हां अगर आपको ऐसा लगता है कि सरकार अपनी तरफ से कभी भी नोट छाप सकती है, तो हम आपको बता दे कि ऐसा बिल्कुल नहीं है, क्योंकि सरकार को भी इसके लिए कई तरह से नियम फॉलो करने पड़ते है और तब कही जा कर नोट छापे जाते है। वैसे अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर ये कैसे तय होता है कि नोट कब छापने चाहिए, तो आज हम आपको इसके बारे में पूरी जानकारी देने वाले है। 

नोट कब छापने चाहिए, कौन करता है ये तय :

गौरतलब है कि जब आपके पास पैसे नहीं होते, तो आपको पैसों की जरूरत होती है और ऐसे में आपका भी मन करता होगा कि काश पैसे छापने वाली मशीन आपके पास ही आ जाएं। जिससे आपकी सारी टेंशन खत्म हो सके। हालांकि ये तो उनके बस की बात भी नहीं है, जिनके पास नोट छापने की मशीन है। यानि अगर हम सीधे शब्दों में कहे तो खुद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया या भारत सरकार भी ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि उन्हें भी कई नियमों का ध्यान रखते हुए नोट की छपाई करनी होती है। जिसके बाद बाजार में नोट आते है। ऐसे में ये जानना बहुत जरूरी है कि आखिर नोट किस आधार पर छापे जाते है और यह कब पता चलता है कि अब नोट छापने की जरूरत है।

यहां गौर करने वाली बात ये है कि भारत में नए सिक्के छापने का अधिकार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास है और इसके चलते एक रुपए को छोड़ कर सभी नोट आरबीआई ही छापता है, जब कि एक रुपए का नोट भारत सरकार की तरफ से छापा जाता है। हालांकि यहां खास बात ये है कि आरबीआई दस हजार रूपए तक के नोट छाप सकता है और इससे बड़े नोट छापने के लिए उन्हें सरकार से इजाजत लेनी पड़ती है।

आरबीआई को रखना पड़ता है कई बातों का ध्यान :

इसके लिए आरबीआई कई मानकों को ध्यान में रखते हुए पहले ये पता करता है कि क्या नोट छापने की जरूरत है और फिर सरकार से स्वीकृति ली जाती है। जिसके बाद सरकार भी आदेश देने से पहले आरबीआई से इजाजत लेती है और इसी आधार पर नोट छापने का अंतिम फैसला लिया जाता है। मगर आखिरी फैसला तो सरकार का ही होता है। अब ऐसा तो है नहीं कि जब देश में गरीबी आएं या जब मन करे तब नए नोट छाप दिए जाएं।

इसके इलावा नोट छापने का अधिकार भले ही सरकार के पास होता है, लेकिन ऐसा नहीं है कि सरकार जब चाहे तब नोट छाप दे, क्योंकि इससे देश की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है। इसलिए सरकार और आरबीआई जीडीपी, विकास दर तथा राजकोषीय घाटा के आधार पर ही ये तय किया जाता है कि आखिर कितनी बढ़ोतरी होनी चाहिए।

इस साल हुई थी रिजर्व बैंक की स्थापना :

बता दे कि रिजर्व बैंक ने साल 1956 से करेंसी नोट छापने के लिए मिनिमम रिजर्व सिस्टम के तहत करेंसी की छपाई की थी और इस नियम के अनुसार करेंसी नोट प्रिंटिंग के विरुद्ध न्यूनतम दो सौ करोड़ रुपए का रिजर्व हमेशा रखना जरूरी है। इसके बाद ही रिजर्व बैंक करेंसी नोट प्रिंट कर सकता है। बहरहाल भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना एक अप्रैल 1935 को हुई थी और इसका मतलब ये है कि आजादी से पहले ही देश में रिजर्व बैंक की नींव पड़ चुकी थी।

ऐसे में अपनी स्थापना के तीन साल बाद यानि 1938 को जनवरी के महीने में आरबीआई ने पहली बार पांच रुपए का करेंसी नोट जारी किया था और इस नोट पर किंग जॉर्ज VI की तस्वीर प्रिंट की हुई थी। इसका मतलब है ये है कि आजादी से नौ साल पहले ही रिजर्व बैंक ने अपनी पहली करेंसी जारी कर दी थी और इसके बाद दस रुपए के नोट तथा मार्च में सौ रुपए के नोट और फिर जून में एक हजार रुपए तथा फिर दस हजार रुपए के करेंसी नोट जारी किए थे। बहरहाल अब तो आपको पता चल गया होगा कि आखिर नोट कब छापने चाहिए और सरकार को भी नोट छापने से पहले कई नियमों को फॉलो करना पड़ता है।

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